Satyendra Nath Bose--The Man Who Invented💥 Boson Particle⚛⚛...💥💥

दोस्तों, मुझे पता है कि आप सभी ने नए साल को बड़े ही आनंद के साथ बिताया होगा | हाँ, मैंने थोड़ी देर कर दी ये बात पूछने में 😊,पर कर भी क्या सकते है ??👊

आशा है की यह साल आप सभी के जीवन में नयी उमंग और नयी खुशियाँ लेकर आये , वैसे खुशियों से याद आया, क्या आपने जनवरी की पहली को हमारे ही देश के एक महान गणितज्ञ और भौतिकी वैज्ञानिक के जन्मदिन का जश्न मनाया ??

आप में कुछ लोगों को ये बात नयी😕😕 लगी हों , लेकिन अब नहीं लगेगी ,क्योंकि आज हम भारत के एक ऐसे गणितज्ञ और भौतिकशास्त्री (Physicist)  के बारे में जानेंगे जिन्होंने एक ऐसी खोज की जिनका एहसान हमें आज भी नहीं भूलना चाहिए | 

हाँ ,मैंने भी थोड़ी देर कर दी ,पर वो कहते है न, देर आये दुरुस्त आयें || 

उस भारतीय वैज्ञानिक का नाम था ----सत्येंद्र नाथ बोस(Satyendra Nath Bose)


बोस जी का जन्म 1 जनवरी 1894 में कोलकत्ता के एक बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था | उनके पिता,सुरेंद्रनाथ बोसईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी के इंजीनियरिंग विभाग में काम करते थे। बोस जी अपने घर में इकलौते बेटे थे ,उनकी छ: बहने थी|

उनका पैतृक घर बंगाल प्रेसीडेंसी में, बारा जगुलिया गाँव में था।  उनकी स्कूली शिक्षा पांच साल की 
उम्र में, उनके घर के पास से शुरू हुई।  जब उनका परिवार गोआबागान चला गया, तब उन्होंने न्यू इंडियन स्कूल में अपना भर्ती कराया स्कूल के अंतिम वर्ष में, उन्हें हिंदू स्कूल में भर्ती कराया गया।  उन्होंने 1909 में अपनी परीक्षा (मैट्रिक) पास की और पाँचवा स्थान प्राप्त किया
 
इसके बाद वे कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में इंटरमीडिएट साइंस कोर्स में शामिल हो गए, जहाँ उन्हें जगदीश चंद्र बोस, शारदा प्रसन्न दास और प्रफुल्ल चंद्र रे शिक्षक के रूप में मिलें जिन्होंने उन्हें हमेशा ऊँचे लक्ष्य रखने की प्रेरणा दी | उन्होंने अपनी गणित में  बैचलर ऑफ़ साइंस प्रेसीडेंसी कॉलेज से की | फिर उन्होंने उस समय की आशुतोष मुखर्जी  जी द्वारा नवगठित साइंस कॉलेज में दाखिला लिया | उन्होंने अपनी एमएससी में मिश्रित गणित की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। एमएससी में उनके अंकों ने एक नया मुकाम बनाया।  कलकत्ता विश्वविद्यालय के इतिहास के रिकॉर्ड में, जिसे पार किया जाना बाकी है। 

 सन 1916 में, उन्होंने  शोध वैज्ञानिक (Research Scientist) के रूप में कलकत्ता के साइंस कॉलेज में शामिल हो गए और Relativity  के सिद्धांत में अपनी पढ़ाई शुरू की। 1916 से 1921 तक उन्होंने कलकत्ता के विश्वविद्यालय -साइंस कॉलेज में Physics Lecturer  के पद पर रहे | 

उस साल क्वांटम सिद्धांत (Quantum Theory) के आने से  विज्ञान के क्षेत्र में उफान आ गयी थी, इसके कई परिणाम आने बाकी थे | 

बोस जी का कई प्रकार के भाषाओं को पर अच्छी पकड़ थी --बंगाली, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन और संस्कृत | इसके अलावा उन्होंने लॉर्ड टेनिसन, रवींद्रनाथ टैगोर और कालीदास की कविता में भी पारंगत किया था। बोस जी भारतीय संगीत के अत्यधिक प्रशंसक थे, वह वॉयलिन बजाने में पारंगत थे | 


Scientific Background ::🎇🎇

सत्येंद्र नाथ बोस एकमात्र ऐसे भारतीय भौतिक वैज्ञानिक  हैं, जिनके नाम को अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ जोड़ा जाता है।

हम जानते है की किसी भी पदार्थ के 3 रूप होते है - ठोस, द्रव्य और गैस (Solid, Liquid & Gas) | वैसे आमतौर पर तो किसी भी चीज के ये तीन ही रूप होते हैं लेकिन कुछ वस्तुएं ऐसी भी होती है जिनकी एक और रूप पाया जाता है। उस रूप को  Bose-Einstein Condensate के नाम से जाना जाता है। Bose-Einstein Condensate दो लाजवाब वैज्ञानिकों के दिमाग का नतीजा है | 

1918 में सत्येंद्र नाथ बोस, मेघनाद साहा जी  के साथ से सैद्धांतिक भौतिक(Theoretical Physics)  और गणित में कई पेपर प्रस्तुत किए। Einstein के अनुमति से ही उन्होंने सन 1919  में आइंस्टीन की विशेष और सामान्य सापेक्षता (Special Relativity) के  जर्मन और फ्रेंच अनुवादों को अंग्रेजी में अनुवाद कर पहली पुस्तक तैयार की।

1921 में उन्होंने ढाका के विश्वविद्यालय में Physics Department में Reader के पद पर ज्वाइन किया | उसी विश्वविद्याल्य में जब वो अपने छात्रों को Theory Of Radiation & Ultraviolet Catastrophe के बारे में बता रहें थे ,तब उन्होंने गौर किया की Maxwell Boltzmann द्वारा दी गयी Microscopic Particle (सूक्ष्म कण ) के सिद्धांत Heisenberg 's Uncertainity के कारण सही नहीं आ रहे थे | और इस प्रकार उन्हें  phase space
में कणों की संभावना के खोज के लिए प्राहोत्साहन मिला |                                                                           
                                                                  


सत्येंद्र नाथ बोस जी इस खोज को "Plank's Law & The Hypothesis Of Light Quanta " के अंतर्गत     रखा और इसे प्रकाशन के लिए भेजा ,परन्तु ब्रिटश सरकार ने इसे खारिज कर दिया | इसके बाद उन्होंने    सीधे जर्मनी में Albert Einstein को यह शोध एक पत्र के साथ भेज दिया |                                                  

Albert Einstein ने इस शोध के महत्व को समझा और इसे प्रकाशित करने के लिए Zeitschrift Fuer Physik  में भेजा | आइंस्टीन ने बोस जी  के कार्य को जर्मन भाषा में अनुवाद कर के न सिर्फ प्रकाशित किया, बल्कि इसके अंत में एक खास नोट भी लिखा, उन्होंने लिखा था, “प्लैंक के फॉर्मूला पर बोस का डेरीवेशन मेरे हिसाब से विज्ञान में आगे की तरफ एक महत्वपूर्ण कदम है। यहाँ पर प्रयोग की गयी प्रक्रिया आइडियल गैस के क्वान्टम थ्योरी को भी दर्शाती है, और इसे मैं कहीं और भी सिद्ध करूंगा।”

Einstein ने तब इस सिद्धांत को Ideal Gas तक बढ़ाया और इस शोध को बर्लिन में हुए वैज्ञानिक सम्मलेन में प्रस्तुत किया | बाद में बोस जी ने आइंस्टीन को एक और पेपर भेजा जिसे भी जर्मन भाषा  में अनुवाद किया गया | बोस ने Plank's  Law की जो डेरिवेशन दी थी, उसी से बोस-आइंस्टीन स्टेटिस्टिक्स आयी और यह क्वांटम मैकेनिक्स का एक अहम हिस्सा है।

इन Particles बोसोन क्यों कहते हैं ??💁💁💁

बोस जी वो व्यक्ति थे ,जिन्होंने यह पता लगाता था कि समान फोटॉनों (Special Case Of Photons) का एक समूह कैसे व्यवहार करता है।उन्होंने केवल क्वांटम मैकेनिकल विचारों का उपयोग करके, गणितीय रूप से(Mathematically ) , प्लांक के विकिरण (Plank's Law Of Radiation )  के नियम को पुन: प्रस्तुत किये।  उनकी इसी Mathematical गणना से Quantum Statistics की नीव रखी गयी | इसी शोध को Bose - Einstein Statistics कहा गया और उन particles (Photons ) को Boson Particles कहा जाता है | 

नवंबर 1925 में आइंस्टीन को देखने के लिए बोस पेरिस से बर्लिन गए। आइंस्टीन चाहते थे कि बोस एक नए वैज्ञानिक पहलु - The Statistics Of Light Quanta & The Transition Probabilities Of  Radiation पर काम करे ,परन्तु बोस जी ढाका के विश्वविद्यालय में Physics Labrotiries स्थापित करने के लिए ढाका लौटना चाहते थे।

बोस जी ने अपनी प्रयोगशाला के लिए खुद ही एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी का उपकरण तैयार किया। उन्होंने X-ray Spectroscopy, X-ray diffraction, Magnetic properties of matter, Optical spectroscopy, Wireless, and unified field के सिद्धांतों में खोज विभाग के लिए प्रयोगशाला और पुस्तकालयों की स्थापना की। 

बोस जी भौतिकी विज्ञानी के साथ साथ बहुभाषी भी थे,और उनकी यह सोच थी कि स्कूलों में बच्चो को  बंगाली भाषा में शिक्षा दी जाये। उनका मानना था कि बच्चों को उनकी स्थानीय भाषा में ही पढ़ाया जाना चाहिए। उनका मानना था की बच्चों अपनी भाषा में कठिन से कठिन विषयों को समझ सकते है ,और यही कारण था की उन्होंने कई वैज्ञानिक कार्यों को बंगाली भाषा में अनुवादित किया। साथ ही,  उन्होंने एक समिति, ‘बंगिया विज्ञान परिषद’ की स्थापना भी की ताकि विज्ञान को क्षेत्रीय भाषा में बढ़ावा दिया जाय | 

भौतिकी के अलावा, उन्होंने Biotechnology and Literature (Bengali and English) में भी शोध किया।  उन्होंने Chemistry, Geology,Zoology, Anthropology, Engineering and Other Sciences में गहन अध्ययन किया।

फिजिक्स में अपने योगदानों के लिए बोस कई बार नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित तो हुए, पर एक बार भी उन्हें यह पुरस्कार नहीं मिला। हालांकि, इस बात ने उन्हें कभी निराश नहीं किया। उनका मानना था, “मुझे वो पहचान मिल चुकी है जिसका मैं हकदार हूँ।”

आप सभी से यह उम्मीद करता हूँ की आपको सत्येंद्र नाथ बोस जी के बारे में जानकर और  उनके द्वारा किये गए शोध का  महत्त्व जान गए होंगे !!😇😇

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5 Comments

  1. I have never heard about Satyendra Nath ji. Such a brilliant mind Our country had!🙏

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  2. Thanks.. for sharing valuable knowledge with us.

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  3. Doing a great job.👍 Keep on spreading fact about our country and our culture.

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  4. Thanks for sharing more about bose ji

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