इस टॉवर के झुकाव का कारण जमीन का एकतरफा नरम हो जाना बताया गया था | लगभग 17 सालों की मेहनत के बाद इस टावर को 1.5 इंच तक सीधा कर दिया गया है |
लेकिन आज में आपको भारत में स्थित एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहा हूँ , जो पीसा के टावर से भी 5 डिग्री ज्यादा झुका हुआ है | लेकिन हमारा ये दुर्भाग्य है की हम इस वास्तुकला के बेजोड़ नमूने के बारे में नहीं जानते |
इस मंदिर का नाम है---------रतनेश्वर मंदिर
इस मंदिर का निर्माण शास्त्रीय शैली (classical style) में नगारा शिखर और चरण मंडप के साथ किया गया है | इसका निर्माण बहुत ही कम जगह पर किया गया है |
इस मंदिर के निर्माण को लेकर बहुत सी कथाएं प्रचलित है , हम उन में से कुछ कथाओं के बारे में जरूर जानेंगे |
यह मंदिर मणिकर्णिका घाट में स्थित तारकेश्वर महादेव मंदिर के सामने स्थित है | अहिल्याबाई होल्कर ने 1795 में तारकेश्वर मंदिर का निर्माण किया था | इन दोनों मंदिर के बीच एक स्थान है जिसे बनारस का सबसे पवित्र स्थान कहा गया था |
1860 के दशक की तस्वीरो में इस मंदिर में झुकाव नहीं दिखती थी | आधुनिक तस्वीरों में यह मंदिर लगभग 9 डिग्री (पीसा के लीनिंग टॉवर 4 डिग्री तक झुकी है ) दिखाई देती है।अधिकांश वर्ष पानी के नीचे होने के बावजूद, यह मंदिर अच्छी तरह से संरक्षित है।
मंदिर बहुत ही निचले स्तर पर बना हुआ है जिसके कारण जल स्तर मंदिर के शिखर भाग तक पहुँच जाता है | 2015 में एक बिजली की हड़ताल से शिखर के कुछ तत्वों को थोड़ा नुकसान हुआ है |
एक प्रचलित कथा के अनुसार, इसे राजा मान सिंह के एक सेवक ने अपनी माँ रत्ना बाई के लिए लगभग 500 साल पहले बनवाया था। मंदिर का निर्माण करने के बाद, उन्होंने गर्व से यह कहा कि उन्होंने अपनी माँ (मातृ ऋण ) का कर्ज चुका दिया है । वास्तव में सत्य तो यह है की किसी भी माँ के कर्ज को नहीं चुकाया जा सकता है | मां ने मंदिर के अंदर विराजित भगवान् महादेव को बाहर से ही प्रणाम किया और जाने लगी।
बेटे ने उनसे जब कहा कि माँ मंदिर के अंदर चलकर तो एक बार दर्शन कर लो। तब उसकी मां ने कहा - बेटा पीछे मुड़कर मंदिर को तो देखो, वो जमीन में एक तरफ धंस गया है। कहा जाता है तब से लेकर आज तक ये मंदिर ऐसे ही एक तरफ झुका हुआ है।
इसी कारण इस मंदिर को -मातृ ऋण के नाम से भी जाना जाता है |
इस मंदिर के साथ जुड़ी एक और कहानी प्रचलित है -- कहा जाता है की जिस समय रानी अहिल्या बाई होल्कर शहर में मंदिरो का निर्माण करवा रही थीं ,उसी समय रानी की दासी रत्ना बाई ने भी मणिकर्णिका घाट के ही समीप एक शिव मंदिरके निर्माण कराने की बात कही | अहिल्याबाई जी ने इस मंदिर निर्माण क लिए रूपये भी दिए |
अहिल्या बाई इस मंदिर को देख अत्यंत प्रसन्न हुईं, लेकिन उन्होंने दासी रत्ना बाई से कहा कि वह अपना नाम इस मंदिर को न दें, लेकिन दासी ने इस मंदिर का नाम अपने नाम पर ही रत्नेश्वर महादेव रख दिया। इस पर अहिल्या बाई नाराज हो गईं और श्राप दिया कि इस मंदिर में कोई भी दर्शन पूजन नहीं कर सकेगा।
आश्चर्य की बात तो ये है की ये अभी भी झुकने की क्रम में कायम है | इस मंदिर की छत जमीन से लगभग 7 -8 फुट के ही ऊंचाई पर है |
अंतिम में बस यही कहना चाहूँगा की पीसा केवल 4 डिग्री झुकी होने पर उसे विश्व धरोहर में गिनती की जाती है परन्तु हमारे वनारस के इस नायाब रतनेश्वर मंदिर पर तो किसी का ध्यान ही नहीं गया ||
9 Comments
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ReplyDeleteWelldone!!
ReplyDeleteYou are doing good work.
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteI am happy to know about our ancient temple .What's the reason behind to made it? And their answer .
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteYou are doing a good work for our people to know about our ancient history .🇮🇳 🇮🇳
ReplyDeletethanks..man !!
DeleteBhut accha bhau🤩🤩
ReplyDeleteIf you have any doubt, let me know