दोस्तों,आपने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी -- नासा (NASA) और उसके द्वारा किये गये
  कई खोज के बारे में तो जानते हीं होंगे | नासा ने हबल टेलिस्कोप (Hubble
  Telescope) को स्पेस में होने वाली घटनाओं और नये तारामंडल को खोजने के लिए
  स्थापित किया था | Hubble Telescope का विज्ञान के क्षेत्र में बहुत 
  महत्व है| नासा ने इस टेलिस्कोप को बनने में लाखो करोड़ो रूपये लगाए है| 
      लेकिन क्या आप जानते है ,हमारे भारतीय इतिहास में भी कुछ ऐसे लोग थे ,जो
        खगोल शास्त्र(Astronomy) के महारथी थे | उन्होंने अपने जीवनकालन में ऐसे
        ऐसे चीजों का खोज किया था ,जिन्हे हम आज भी उपयोग करते है| 
    
    
      आज हम उन्हीं विद्यावान लोगों  में से एक व्यक्ति और उनके द्वारा
        बनबाये गये अद्भुत उपकरण के बारें में जानेंगे जिन्हे जानकर आपको
        भी गर्व होगा की हमारे पूर्वज भी खगोल विज्ञान (Space Science) में कितने
        रूचि रखते थे| 
      
      
        
        
        
          
        
        
          
        
        
          
        
          
        
        
          
        
        
          
        
        
        
          
        
        
        
          
        
        
          
        
          
        
        
          
        
        
          
        
        
        
        
          
        
        
          
        
        
        
        
          
        
        
        
    
    
        आज हम जयपुर में स्थित जंतर मंतर,इसके इतिहास और इसके महत्व के बारे
            में जानेंगे | 
      
      
          संस्कृत में जंतर का अर्थ "साधन"(Machine) और मंत्र का अर्थ "सूत्र"(Calculator) या "गणना"
              होता है , इसलिए जंतर मंतर का पूर्ण मतलब  'गणना
              उपकरण' है | 
        
        
             जंतर मंतर (जयपुर) का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई जय सिंह ने सन
              1734 करवाया था।
          
          
          पहले हम यह जानते है की ये जंतर मंतर आखिर है क्या ?
        
        
             जंतर मंतर एक ऐसा उपकरण का संग्रह है जिससे हम समय को
                जानने , ग्रहों के स्थिती ,सूर्य के चारों ओर ग्रहों (पृथ्वी ) की कक्षा पर नज़र
                रखने,और आकाशीय ऊंचाई और संबंधित पंचांगों का निर्धारण करने के लिए
                उपयोग करते है।
          
        
          इस बात को हमे नहीं भूलना चाहिए की जिस विज्ञान में
              विदेशी अरबो खरबों खपा रहा है, वो ज्ञान भारतीय राजाओ ने
              हमे बिल्कुल मुफ्त में दिया।
        
        
           महाराज जय सिंह (द्वितीय) का जन्म 1688 में एक शाही राजपूत परिवार में हुआ था ,जो उस
            समय क्षेत्रीय शासन करते थे । वह बहुत छोटी आयु से  हीं गणित में बहुत ही अधिक रूचि रखते
            थे।  उनके पिताजी की मृत्यु के कारण उनकी मूल  पढ़ाई 11 वर्ष की आयु में  हीं छूट गयी । बाद में उन्होंने 25 जनवरी,  1700 
        
        को राजगद्दी संभाली। 
        
          एक राजा के पद पर होने के बावजूद भी में उन्होंने अपना अध्ययन
            नहीं छोड़ा । महाराजा सवाई जय सिंह को खगोल विज्ञान और खगोलीय वस्तुओं के बारे में
            जानने में अत्यधिक दिलचस्पी थी इसलिए,
        
        
            उन्होंने खगोल विज्ञान और ज्योतिष का गहरा अध्ययन किया। उन्होंने अपने
            कार्यकाल में बहुत से खगोल विज्ञानऔर इनसे सम्बंधित यंत्र और
            सभी पुस्तकें एकत्र कीं। उन्होंने
            प्रसिद्ध  खगोलशास्त्रियों को विचार करने के लिए एक जगह
            भी बनाया।
            
            
              
        
        
          उन्होंने खगोल विज्ञान के प्रति बेजोड़ दिलचस्पी के कारण दिल्ली में एक के बाद एक पांच अलग-अलग स्थानों पर ऐसी
            वेधशालाएं(Observatory) बनाईं। जंतर मंतर की निर्माण के लिए महारजा जयसिंह जी ने 40,000 पन्नो की खगोलीय पढ़ाई की थी।
        
        
           जंतर मंतर वेधशाला (Observatory) का मुख्य उद्देश्य खगोलीय
            अध्यन और सूर्य, चंद्रमा और ग्रहों के  स्थ्तिी ,समय और चाल
            की भविष्यवाणी करना था।  
        
        
           जंतर मंतर जयपुर सिटी पैलेस और हवा महल के बीच पुराने शहर में स्थित
            है, और इसकी ऊंचाई 723 फीट (220 मीटर) है। जयपुर में स्थित जंतर मंतर सभी पाँच वेधशालाओं में सबसे
            बड़ी और सबसे अच्छी  तरह से संरक्षित है।
        
        
        
          जंतर मंतर जयपुर में चौदह वास्तु खगोलीय उपकरण हैं:--
        
        
          सम्राट यन्त्र
        
        
          सस्थाम्सा
        
        
          दक्सिनोत्तारा भित्ति यंत्र
        
        
          जय प्रकासा और कपाला
        
        
          नदिवालय
        
        
          दिगाम्सा यंत्र
        
        
          राम यंत्र
        
        
          रसिवालाया
        
        
            इन सभी यंत्रों में सम्राट यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र, दिगंश
              यंत्र, भित्ति यंत्र, मिस्र यंत्र, आदि प्रमुख हैं, जिनका प्रयोग
              सूर्य तथा अन्य खगोलीय पिंडों (Celestial bodies) की स्थिति तथा गति
              के अध्ययन में किया जाता है। 
          
        
          राजा जय सिंह तथा उनके राजज्योतिषी पंडित जगन्नाथ ने इसी विषय पर
            'यंत्र प्रकार' तथा 'सम्राट सिद्धांत' नामक ग्रंथ लिखे।
        
        
          ५४ वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु के बाद देश में यह वेधशालाएं बाद में
            बनने वाले तारामंडलों के लिए प्रेरणा और जानकारी का स्रोत रही हैं। हाल
            ही में दिल्ली के जंतर-मंतर में स्थापित रामयंत्र के जरिए प्रमुख
            खगोलविद द्वारा शनिवार को विज्ञान दिवस पर आसमान के सबसे चमकीले ग्रह
            शुक्र की स्थिति नापी गयी थी। इस अध्ययन में नेहरू तारामंडल के
            खगोलविदों के अलावा एमेच्योर एस्ट्रोनामर्स एसोसिएशन और गैर सरकारी
            संगठन स्पेस के सदस्य भी शामिल थे।
        
        
          भारत - ज्ञान के रथ के देश मे जयसिंहजी जैसे राजा का सम्मान नही,
            किंतु .....
        
        
          1).  उन्नाटामासा ( Unnatamsa )
        
        
        
          यह यंत्र जंतर मंतर के प्रवेश द्वार के ठीक बाए ओर दो सहायक बीम के बीच लटका हुआ है। इस विशाल  गोले को उत्रातांश यंत्र के नाम से जाना जाता है। उन्नाटामासा आकाश में किसी वस्तु की ऊँचाई या कोणीय ऊँचाई (Angular
            Distance) मापने का एक उपकरण है। इसे किसी भी आकाशीय वस्तु की ओर संरेखित करने के लिए इसे किसी
            भी दिशा में ले जाया जा सकता है।  
        
        
           2 ). सम्राट-यंत्र
        
        
          जंतर मंतर में सबसे विशाल यंत्र सम्राट यंत्र है।यह यंत्र सबसे लोकप्रिय है और इसकी भव्यता का अंदाजा इसी से हो जाता है की इसकी
            पूरी ऊंचाई 90 फ़ीट है।इसके शीर्ष पर एक हिंदू छतरी (छोटा कपोला) है, जिसका उपयोग ग्रहण की घोषणा
            और मानसून के आगमन और समय जानने के लिए  किया जाता है।
        
        
          यह यंत्र दुनिया का सबसे बड़ा सन डायल है,  जो सूरज की
            रोशनी की छाया  का उपयोग करके 2 सेकंड के अंतराल में समय
            मापता है।
        
        
           3). जया प्रकाश यंत्र
        
        
          इस यंत्र का आविष्कार स्वयं महाराजा जयसिंह जी ने किया था। अपने धारीदार रंग होने के कारण यह यंत्र लोगों को अत्यधिक आकर्षित
            करता है।इस यंत्र की आकार एक कटोरे की तरह है और यह सम्राट यंत्र और दिशा
            यंत्र के बीच स्थित है।  दिलचस्प बात यह है कि भारतीय शादियों से शुभ तिथि की गणना
            के लिए इस यंत्र का प्रयोग करते आये है।  
            
            
        
      
      जंतर मंतर के यंत्र आज भी बिल्कुल  सही सलामत अवस्थ्ता में
        है जिनकी मदद से हर साल मौसम और वर्षा की जानकारियों को निकाला जाता है। यहाँ की उपस्थित यंत्रों की गणना के बाद ही यहां की पंचांग तैयार की
        जाती है।
    
    
      सटीक मौसम,समय,और ग्रहों की स्थिति की गणना करने के कारण ही यूनेस्को
        (UNESCO) ने 1 अगस्त 2010 को जंतर मंतर को विश्व धरोहर  के 
        सूचि में शामिल की है। 
    
    
      विश्व विरासत में अपना नाम शामिल करने वाली जंतर मंतर ,राजस्थान  की
        पहली और हमारे भारत की 23वी  प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर बन गयी। इस उपलब्धि से जंतर मंतर को एक अलग ही पहचान मिल गयी। 
    
    
      हमारे इतिहास के इस अद्भुत धरोहर के निर्माण का पूरा श्रेय महाराजा
        जय सिंह को जाता है।
    
    
      मुझे उम्मीद है की आपको हमारे भारतीय कलाकृतीयों की श्रेणी की यह
          भाग अच्छा लगा होगा, यदि आप इसके बारे में  और जानना चाहते है,तो आप
          कमेंट में हमें कह सकते है ,मैं इसके दुसरे भाग को अवश्य लाऊँगा ,जिसमे
          आपको इसके बारे में और कई जानकारियां मिलेंगी। 
    
  






3 Comments
Good job I want to know more about it ???
ReplyDelete🔥️🔥️🔥
ReplyDeleteGive us more information about Jantar Mantar
ReplyDeleteIf you have any doubt, let me know